Friday, December 31, 2021

xxx ब्रह्मऋषि वशिष्ठ

My photo
ब्रह्मऋषि वशिष्ठ
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
उनका स्थान सप्तऋषियों में है। 
वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत।
विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्॥
सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं :- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।[विष्णु पुराण]
महर्षि वशिष्ठ ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। ऋग्वेद के मंत्र द्रष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक वशिष्ठ सप्त ऋषियों में से एक हैं। वेद वक्ताओं में वशिष्ठ ऋग्वेद के 7वें मण्डल के प्रणेता हैं तथा 9वें मंडल में भी इनके वंशधरों के अनेक मंत्र हैं।
वशिष्ठ जी की मुख्यत: दो पत्नियाँ हैं। पहली अरुंधती और दूसरी उर्जा। उर्जा प्रजापति दक्ष की तो अरुंधती कर्दम ऋषि की कन्या थी। अतः वे भगवान् शिव के साढू तथा माता सती के बहनोई हैं। उन्होंने ही श्राद्धदेव मनु (वैवस्तवत मनु) को परामर्ष देकर उनका राज्य उनके पुत्रों को बँटवाकर दिलाया था। उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मों में उनकी सहभागिनी हैं।
उनका वर्णन इक्क्षवाकु के काल, राजा हरिशचंद्र के काल, राजा दिलीप के काल में, राजा दशरथ के काल में और महाभारत काल में मिलता है।वही ब्रह्मा जी के मानस पुत्र, मित्रावरुण के पुत्र, अग्नि के पुत्र हैं। इस प्रकार उनका बारह बार प्राकट्य है। 
इक्क्षवाकु वंशी त्रिशुंकी के काल में हुए उन्हें वशिष्ठ देवराज के रूप में जाना गया कहते थे। कार्तवीर्य सहस्रबाहु के समय में हुए उन्हें वशिष्ठ अपव कहते थे। अयोध्या के राजा बाहु के समय में हुए उन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम) कहा जाता था। राजा सौदास के समय उन्हें वशिष्ठ श्रेष्ठ भाज कहा गया। सौदास ही आगे जाकर राजा कल्माषपाद कहलाए। राजा दिलीप के समय हुए उन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (द्वितीय) कहा जाता था। भगवान् श्री राम के समय में हुए उन्हें महर्षि वशिष्ठ कहते थे और महाभारत काल में उनको महर्षि पराशर के पिता के रूप में जाना गया। 
उन्होंने जन्म के समय ही ब्रह्मा जी कहा कि उन्हें शरीर त्याग करना है। ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि भगवान् श्री राम के अवतार काल में उनकी अहम भूमिका उनके गुरु के रूप में होगी तो उन्होने जीवन को स्वीकार कर लिया।वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस के रूप में भी उनको जाना जाता है। 
महाराज दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ उनके चारों पुत्रों के गुरु-शिक्षक भी थे। वशिष्ठ जी के कहने पर ही महाराज दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। विश्वामित्र ने इनके 100 पुत्रों को मार दिया था, फिर भी इन्होंने विश्वामित्र को माफ कर दिया। विश्वामित्र की उनके साथ जन्मजात शत्रुता थी। एक समय में तो इन दोनों ने कुक्कुट-मुर्गे के रूप में भी युद्ध किया। विश्वामित्र उनसे स्पर्धा के कारण ही ब्रह्मऋषि बनना चाहते थे। 
ब्रह्मऋषि वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रा-वरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।
उनकी सन्तानों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य अपने कर्मों के आधीन पहचाने जाते हैं। 
महाराज इक्ष्वाकु ने 100 रात्रि का कठोर तप करके भगवान् सूर्य नारायण की सिद्धि प्राप्त थी की और वशिष्ठ जी को अपना गुरु बनाकर उनके उपदेश से अपना पृथक राज्य और राजधानी अयोध्यापुरी स्थिपित कराई और वे प्राय: वहीं रहने लगे। वशिष्‍ठ जी ही पुष्कर में प्रजापति ब्रह्मा के यज्ञ के आचार्य रहे थे।
भगवान् श्री राम के अवतार काल में उन्होंने अयोध्या के राज पुरोहित के पद पर कार्य किया था। उन्होंने ही दशरथ को पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया जिसमें गोकर्ण पुरोहित थे। भगवान् श्री राम के जात कर्म, चौल, यज्ञोपवीत, विवाह संस्कार आदि उन्होंने ही सम्पन्न कराये। महाराज श्री राम की राज्याभिषेक की पूरी व्यवस्था इन्हीं के द्वारा सम्पन्न हुई।
महाभारत के काल में वशिष्ठ जी के पुत्र शक्ति मुनि और पौत्र पराशर हुए। महर्षि वेद व्यास उनके प्रपौत्र हैं।
इसके वंश में क्रमश: प्रमुख लोग हुए :- (1). देवराज, (2). आपव, (3). अथर्वनिधि, (4). वारुणि, (5). श्रेष्ठभाज्, (6). सुवर्चस्, (7). शक्ति और (8). मैत्रावरुणि। एक अल्प शाखा भी है, जो जातुकर्ण नाम से है।[वायु, ब्रह्मांड एवं लिंग, मत्स्य पुराण] 
वशिष्ठ वंश के रचित अनेक ग्रन्थ अभी उपलब्ध हैं। जैसे वशिष्ठ संहिता, वशिष्ठ कल्प, वशिष्ठ शिक्षा, वशिष्ठ तंत्र, वशिष्ठ पुराण, वशिष्ठ स्मृति, वशिष्ठ श्राद्ध कल्प, आदि इनमें प्रमुख हैं।
Kak Bhushundi narrated the story of RAM JANM to the saints-sages-Rishi and Muni,  at Shuk Tal, near Meerut in UP-INDIA. He told that all these events were seen by him, happening six times earlier as well, in different Manvantr. He specifically said that the cosmic events are cyclical in nature. In fact, all the events were forecasts, made by Mahrishi Balmiki much before the advent, in the from of Balmiki Ramayan (arrival of Ram). Brahma Ji directed Vashishth Rishi not to reject the embodiment, since he was assigned the task of educating-enlightenment of the incarnation.
काक भुशुण्डी जी ने भगवान् श्री राम के जन्म की इस पावन कथा को ऋषि-मुनियों को शुक ताल पर बारम्बार सुनाया था। उन्होंने यह सब घटना क्रम पहले भी छः कल्पों-मन्वन्तरों में देखा था और इस बात की परीक्षा भी ली थी कि भगवान् विष्णु ने ही साक्षात रामावतार ग्रहण किया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रकार का घटनाक्रम माला के घूमते हुए बीजों की तरह पुनः-पुनः घटित होता रहता है। जब वशिष्ठ ऋषि ने अपने काया-कलेवर से मुक्ति की प्राप्ति चाहि तो उन्हें ब्रह्मा जी ने यह कहकर रोका कि अभी उनका दायित्व शेष है और उन्हें अपने अवतार काल में भगवान् राम के गुरु का पदभार ग्रहण करना है।
Vashishth's cow :: Vishwamitr with his army arrived at the hermitage of sage Vashishth. The sage welcomed him and offered a huge banquet to the army, that was produced by Sabla-a Kam Dhenu. Vishwamitr asked the sage to part with Sabla and instead offered thousand of ordinary cows, elephants, horses and jewels in return. However, the sage refused to part with Sabla, who was necessary for the performance of the sacred rituals and charity by the sage. Agitated, Vishwamitr seized Sabla by force, but she returned to her master, fighting the king's men. She hinted Vashishth to order her to destroy the king's army and the sage followed her wish. Intensely, she produced Pahlav warriors, who were slain by Vishwamitr's army. So, she produced warriors of Shak-Yavan lineage. From her mouth, emerged the Kambhoj, from her udder Barvaras, from her hind Yavans and Shaks, and from pores on her skin, Harits, Kirats and other foreign warriors. Together, the army of Sabla killed Vishwamitr's army and all his sons. This event led to a great rivalry between Vashishth and Vishwamitr, who renounced his kingdom and became a great sage to defeat Vashishth.
 
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.

No comments:

Post a Comment