Wednesday, December 29, 2021

xxx बृहस्पति

देव गुरु बृहस्पति
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
इन्हें तीक्ष्ण शृंग भी कहा गया है। धनुष बाण और सोने का परशु इनके हथियार थे और ताम्र रंग के घोड़े इनके रथ में जोते जाते थे। बृहस्पति का अत्यंत पराक्रमी बताया जाता है। इन्द्र को पराजित कर इन्होंने उनसे गायों को छुड़ाया था। युद्ध में अजय होने के कारण योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते थे। ये अत्यंत परोपकारी थे जो शुद्धाचारणवाले व्यक्ति को संकटों से छुड़ाते थे। इन्हें देवराज का गृह पुरोहित भी कहा गया है। इनके बिना यज्ञ-याग सफल नहीं होते।
ये अंगिरा ऋषि की सुरूपा नाम की पत्नी से पैदा हुए थे। तारा और शुभा इनकी दो पत्नियाँ थीं। सोम-चंद्र देव तारा को उठा ले गये। इस पर बृहस्पति और सोम में युद्ध ठन गया। ब्रह्मा जी के हस्तक्षेप करने पर सोम ने बृहस्पति की पत्नी को लौटाया। तारा ने बुध को जन्म दिया जो चंद्रवंशी राजाओं के पूर्वज कहलाये।
इन्होंने अपने भाई की गर्भवती पत्नी का साथ संभोग किया। इसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुए विरथ नाम के पुत्र को देवराज ने महाराज भारत-कुरु वंश को समर्पित कर दिया।
दुष्यन्त और शकुंतला के पुत्र राजा भरत ने 27,000 साल तक शासन किया। उन्होंने अपने पुत्रों को अपने अनुरूप नहीं पाया तो, अपनी पत्नियों को यह बता दिया। उनकी पत्नियों ने अपने बच्चों को इस डर से मार डाला कि राजा कहीं उनको छोड़ न दें। इस प्रकार सम्राट भरत का कुरु-चन्द्र वंश, वितथ-विच्छिन्न होने लगा। तब उन्होंने सन्तान की प्राप्ति के लिये मरुत्स्तोम नामक यज्ञ किया। देवराज इंद्र और मरुद्गणों ने प्रसन्न होकर उन्हें विरथ नाम का पुत्र लाकर दिया। 
बृहस्पति ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी के साथ जबरदस्ती मैथुन किया, जिससे विरथ का जन्म हुआ। बृहस्पति ने उसे अपना औरस और अपने भाई का क्षेत्रज अर्थात दोनों का पुत्र-द्वाज कहा (born out of two fathers) और भाई की पत्नी को उसका भरण-पोषण (भर) करने को कहा। बच्चे को माँ और बाप दोनों ने छोड़ दिया। वो बच्चा विरथ कहलाया। देवताओं के द्वारा नाम का ऐसा निर्वचन होने पर भी माँ, ममता ने ऐसा समझा कि वो विरथ अर्थात अन्याय से पैदा हुआ है। अतः उसके द्वारा भी छोड़ दिए जाने पर मरुद्गणों ने उसका पालन किया। भरत के वंश को बचाने के लिए विरथ को उसे लाकर दिया तो, भरत ने उसे अपना  दत्तक पुत्र स्वीकार किया।[श्री मद्भागवत 9.20.34-39]
Rishi Bhardwaj was the grand son of sage Brahaspati. His father's name was Shanyu (शंयु), who was the son of Dev Guru Brahaspati. Dev Guru Brahaspati was the son of Rishi Angira. Angira, Brahaspati and Bhardwaj are recognised as Trey Rishi. Mahrishi Angira, was the elder son of the creator Bhagwan Brahma. Brahma Ji took birth from the naval Lotus of the Nurturer Bhagwan Vishnu. Bhardwaj is the father of Guru Dronachary and grandfather of Ashwasthama. Dronachary was an incarnation of Dev Guru Brahaspati himself and Ashwatthama is an incarnation of Bhagwan Shiv. Bhardwaj is one of the most exalted Gotr of Brahmns in India.
Dev Guru Brahaspati entered into sexual intercourse with the wife of his younger brother, who already had intercourse with her husband. As a result of this relationship a male child was born, who was protected by the king of heaven, Dev Raj Indr. Bhardwaj literary means :- born out of two fathers. Bhardwaj Rishi and Virath (Bhrdwaj) are two entities. This son was later known as Virath (विरथ) and adopted by the mighty Emperor Bharat, who ruled the earth for 27,000 years. Bharat was the propagator of Chandr-Kuru Vansh clan, born out of the relationship of Dushyant and Shakuntla. One should not be confused with this Bhardwaj, later called Virath with Bhardwaj Rishi, the progenitor, (ancestor, forefather, मूलपुरुष, पुरखा, अग्रगामी, प्रजनक) of Bhardwaj clan. Virath led to the progress of Kuru Vansh, till Mahrishi Ved Vyas led to the birth of Dhrat Rashtr, Pandu and Vidur Ji.
बृहस्पति के संवर्त और उतथ्य नाम के दो भाई थे। संवर्त के साथ बृहस्पति का हमेशा झगड़ा रहता था।[महाभारत]
देवों और दानवों के युद्ध में जब देव पराजित हो गए और दानव देवों को कष्ट देने लगे तो बृहस्पति ने शुक्राचार्य का रूप धारणकर दानवों का मर्दन किया और नास्तिक मत का प्रचार कर उन्हें धर्मभ्रष्ट किया।[पद्मपुराण]
बृहस्पति ने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ लिखे। आजकल 80 श्लोक प्रमाण उनकी एक स्मृति (बृहस्पति स्मृति) उपलब्ध है।
ये स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये रहते हैं। ये पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन रहते हैं तथा चार हाथों वाले हैं। इनके चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरद मुद्रा शोभा पाती है। प्राचीन ऋग्वेद में बताया गया है कि बृहस्पति बहुत सुन्दर हैं। ये सोने से बने महल में निवास करते है। इनका वाहन स्वर्ण निर्मित रथ है, जो सूर्य के समान दीप्तिमान है एवं जिसमें सभी सुख सुविधाएं सम्पन्न हैं। उस रथ में वायु वेग वाले पीतवर्णी आठ घोड़े तत्पर रहते हैं।
देवगुरु बृहस्पति की तीन पत्नियाँ हैं जिनमें से ज्येष्ठ पत्नी का नाम शुभा और कनिष्ठ का तारा या तारका तथा तीसरी का नाम ममता है। शुभा से इनके सात कन्याएं उत्पन्न हुईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं :- भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। इसके उपरांत तारका से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। उनकी तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। कच ने ही शुक्राचार्य से मृत सनजीवनी विद्या ग्रहण की।
इनकी एक अन्य पत्नी जौहरा से यहूदियों का प्रादुर्भाव हुआ। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। 
बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं। असुर एवं दैत्य यज्ञ में विघ्न डालकर देवताओं को क्षीण कर हराने का प्रयास करते रहते हैं। इसी का उपाय देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षण करने में करते हैं तथा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं।[महाभारत, आदिपर्व]
देवगुरु बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र और देवताओं के पुरोहित हैं। इन्होंने प्रभास तीर्थ में भगवान् शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने उन्हें देवगुरु का पद प्राप्त का वर दिया था। इनका वर्ण पीला है तथा ये पीले वस्त्र धारण करते हैं। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं तथा इनके हाथों में क्रमश: दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र और वर मुद्रा है। इनका वाहन रथ है, जो सोने का बना हुआ है और सूर्य के समान प्रकाशमान है। उसमें वायुगति वाले पीले रंग के आठ घोड़े जुते हुए हैं। ये अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सम्पत्ति तथा बुद्धि प्रदान करते हैं। 
ये बृहस्पति ग्रह के स्वामी हैं। बृहस्पति प्रत्येक राशि में एक-एक साल तक रहते हैं। वक्रगति होने पर अन्तर आता है। ये मीन और धनु राशि के स्वामी हैं। 
मंत्र :: बृहस्पतये नमः। ॐ गुं गुरुभ्यो नमः। 
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः॥
हे पार्थ! पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति को मेरा स्वरूप समझो। सेनापतियों में कार्तिकेय और जलाशयों में समुद्र मैं हूँ।[श्रीमद्भगवद्गीता 10.24]
The Almighty told Arjun that HE was the priest & adviser of the demigods-deities in the heaven in the form of Brahaspati. HE was the Supreme commander of the army of the demigods-celestial controllers, in the form of Bhagwan Kartikey and amongest the water reservoirs HE was the ocean.
धार्मिक क्रिया कर्म, रीति-रिवाज़, विधि-विधान के श्रेष्ठतम जानकर और देवताओं के मार्ग दर्शक देवगुरु बृहस्पति हैं। वे देवराज के कुल पुरोहित भी हैं। वे हर तरह से राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य से श्रेष्ठ हैं, अतः वे परमात्मा की विभूति हैं। स्कन्द-भगवान् कार्तिकेय भगवान् शिव के पुत्र और देव सेनापति हैं। उनके 6 मुँख और 12 हाथ हैं। वे अद्वितीय और संसार के श्रेष्ठतम सेनापति हैं, अतः प्रभु की विभूति हैं। संसार में जितने भी जलाशय हैं, उन सबमें समुद्र ही श्रेष्ठतम है। अतः वह परमात्मा की विभूति है। पृथ्वी पर बारिश, बर्फ, बादल, नदी, झील आदि का अस्तित्व उसी से है।
Dev Guru Brahspati (Priest & adviser of demigods) is the Ultimate and enlightened philosopher & guide of the demigods. He is the family priest of Dev Raj Indr, as well. His advise is sought as and when there appear any difficulty-trouble in the heaven. He is much more versatile as compared to Shukrachary, the priest of the demons. He is authority on the traditions, trends, rituals, prayers etc., all over the universe. And hence, he is Ultimate and is a form of the Almighty. Bhagwan Kartikey is the Supreme commander of the army of the deities-demigods. He is blessed with 6 mouths and 12 hands. He is the elder son of Bhagwan Shiv and Maa Parwati-the divine Lords. He is an Ultimate expert of the warfare and hence a form of the Almighty. Ocean is the largest water body-reservoir over the earth and nurture the earth in the form of rains, rivers, lacks, clouds, ice etc. Due to this property, it is the Ultimate form of the God.
    
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