Thursday, December 30, 2021

RAKSHA BANDHAN रक्षा बन्धन

रक्षा बन्धन 
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
रक्षा बन्धन :: श्रावणी, उपाकर्म, ऋषि तर्पण,  वेद स्वाध्याय, यज्ञोपवीत धारण पर्व, वेद जयन्ती।
(1).  श्रावणी :- "श्रावण" शब्द का अर्थ  सुनना और श्रावणी जिसका अर्थ होता है, सुनाये जाने वाली। जिसमें वेदों की वाणी को सुना जाये। वह "श्रावणी" कहलाती है अर्थात् जिसमें निरन्तर वेदों का श्रवण और स्वाध्याय और प्रवचन होता रहे, वह श्रावणी है। इस लिए इस महीने का नाम ही श्रवण -सावन मास है। 
(2). उपाकर्म :- जिसमें ईश्वर और वेद के समीप ले जाने वाले यज्ञ कर्मादि श्रेष्ठ कार्य किये जायें वह "उपाकर्म" कहाता है। यह समय धर्म पुस्तकें पढ़ने का उपकरण था। जनता को ऋषि-मुनियों, समाज के विद्वानों के समीप ले आना।
(3).  ऋषि तर्पण :-  जिस कर्म के द्वारा ऋषि मुनियों का और आचार्य, पुरोहित, पंडित जो विशेषकर वेदों के विद्वान है उनका तर्पण किया जाता है उन्हें यथेष्ट दान देना अर्थात् उनके वचनों को सुनकर उनका सम्मान करना ही ऋषि तर्पण कहाता है।
(4).  वेद स्वाध्याय :- स्वाध्याय (वेदों को पढ़ना)भारत की संस्कृति का प्रधान अंग है। 
श्रावण माह में ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यासी, ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र सभी को वेदों का स्वाध्याय में लगने का आदेश है। 
(5).  यज्ञोपवीत धारण :- इस समय जिन लोगों ने यज्ञोपवीत नहीं धारण किया हुआ है, उन्हें नया यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए अर्थात इस बात का संकल्प करना चाहिए कि वे अज्ञान, अंधकार से बाहर निकलेंगे और और ज्ञानवान होकर परिवार, समाज, राष्ट्र को प्रकाशित करेंगे। जिन लोगों ने यज्ञोपवीत धारण किया हुआ है, उन्हें पुराने यज्ञोपवीत को उतारकर नया धारण करना चाहिए। अर्थात् इस बात का संकल्प करना चाहिए कि वह अपने जीवन में स्वाध्याय और यज्ञ को कभी नहीं छोडेंगे। विशेषकर यज्ञोपवीत में तीन धागे होते है वे तीन ऋणों के प्रतीक है। ऋषि ऋण, देव ऋण, पितृ ऋण। मनुष्य को इन तीनों ऋणों का बोध हो और अपना कर्तव्य निभाता रहे यही उद्देश्य है।
(6). रक्षा बन्धन :- रक्षाबंधन का पर्व भारत की संस्कृति से जुड़ा पर्व है। राजपूत काल में अबलाओं द्वारा अपनी रक्षा के लिए वीरों के हाथ में राखी बांधने की परिपाटी का प्रचार हुआ। जिस किसी वीर क्षत्रियों को कोई अबाला राखी भेजकर अपना राखी बंद भाई बना लेती थी वो उसकी रक्षा करना अपना कर्तव्य समझता था। इतिहास में ऐसी बहुत सारी घटनाएं दर्ज है जहां पर भाइयों ने अपने प्राणों की आहुति दे कर बहनों की रक्षा की है। इस दृष्टि से यह त्यौहार भारत की संस्कृति के आध्यात्मिक पथ पर गहरा प्रकाश डालता है।
(7). वेद जयन्ती :- यह दिन इतना पवित्र है कि सृष्टि के आदि में परम् पिता परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा ऋषियों को उनकी हृदय बेदी में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान प्रकट कराया और फिर  इन ऋषियों ने ब्रह्मा आदि ऋषियों के सुनाया। इस प्रकार वेद ज्ञान सृष्टि के आदि में जगत प्रसिद्ध हुआ और श्रुति कहलाया।

    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)