GREAT PERSONALITIES OF INDIA
भारत की विभूतियाँ
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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रानी रासमणि :: ये कलकत्ता के जमींदार की विधवा थीं। 1,793 से 1,863 तक के जीवन काल में, रानी रास्मणी जी ने अनेकों महान कार्य किये। रानी रासमणि जी कैवर्त जाति की थी, जो आजकल अनुसूचित जाति में सम्मिलित है।
इनके जनसाधारण हेतु महान कार्य :-
(1). हावड़ा में गँगा नदी पर पुल बनाकर कलकत्ता शहर बसाया।
(2). अंग्रेजों को ना तो नदी पर टैक्स वसूलने दिया और ना ही दुर्गा पूजा की यात्रा को रोकने दिया।
(3). कलकत्ता में "दक्षिणेश्वर मंदिर" बनवाया।
(4). कलकत्ता में गँगा नदी पर बाबू घाट और नीमतला घाट बनवाए।
(5). श्रीनगर में "शंकराचार्य मंदिर" का पुनरोद्धार करवाया।
(6). मथुरा में "श्री कृष्ण जन्मभूमि" की दीवार बनवाई।
(7). ढाका में मुस्लिम नवाब से 2,000 हिंदुओं की स्वतंत्रता खरीदी।
(8). रामेश्वरम से श्रीलंका के मंदिरों के लिए "नौका सेवा" आरम्भ करवाई।
(9). कलकत्ता का "क्रिकेट स्टेडियम" इनके द्वारा दान दी गई भूमि पर बना है।
(10). "सुवर्णरेखा नदी" से पुरी तक सड़क बनाई।
(11). "प्रेसिडेंसी कॉलेज" और "नेशनल लाइब्रेरी" के लिए धन दिया।
गणितज्ञ लीलावती :: उन्होंने बीजगणित की रचना की थी। दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष की गणना से जान लिया कि वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।
उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था।
एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी।
पर विधाता का ही सोचा होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला।
विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा। लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बाँध टूट गया। लीलावती अपने पिता के घर में ही रहने लगी।
पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना प्रारम्भ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी।
थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में विदुषी हो गई। पाटी-गणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि भास्कराचार्य ने बनाया है। इसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है।
पाटी गणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए लीलावती रखा है।
भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो काव्य में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे।
उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे।कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे।वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, “हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं"। बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने लीलावती रख दिया।
आजकल गणित एक शुष्क विषय माना जाता है पर भास्कराचार्य का ग्रंथ लीलावती गणित को भी आनंद के साथ मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए पढ़ाया जा सकता है। उदाहरण :-
प्रश्न :: निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई।
अये, बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे?
उत्तर :- 120 कमल के फूल।
वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं, "अये बाले,लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है"।
दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस भी घन है।
मूल शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में प्रयुक्त होता है।
इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का अर्थ था "वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा"।
इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियाँ प्रचलित थीं।
सिद्धान्त शिरोमणि के चार भाग हैं :- (1). लीलावती, (2). बीजगणित, (3). ग्रह गणिताध्याय और (4) गोलाध्याय।
लीलावती में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है।
अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् 1,587 में लीलावती का फारसी भाषा में अनुवाद किया।
अंग्रेजी में लीलावती का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् 1,716 में किया।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)