Sunday, July 12, 2015

राज ऋषि विश्वामित्र ASCETIC VISHAWAMITR

राज ऋषि विश्वामित्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
विश्वामित्र अत्रिवंशी ययाति कुल से हैं। उनका स्थान सप्त ऋषियों में है। 
वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत।
विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्॥
सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं :- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भरद्वाज।[विष्णु पुराण]
कुशिक वंश में  उत्पन्न चन्द्रवंशी महाराज गाधि को सत्यवती नामक एक श्रेष्ठ कन्या हुई। जिसका विवाह मुनि भृगु पुत्र ऋचीक के साथ सम्पन हुआ। ऋचीका ने पति की सेवा की जिससे प्रसन्न उन्होंने अभिमंत्रित चरु सत्यवती को प्रदान करते हुए कहा, "देवि! यह दिव्य चरु दो भागों में विभक्त है। इसके भक्षण से तुम्हें यथेष्ट पुत्र की प्राप्ति होगी। इसका एक भाग तुम ग्रहण करना और दूसरा भाग अपनी माता को दे देना। इससे तुम्हें एक श्रेष्ठ महातपस्वी पुत्र प्राप्त होगा और तुम्हारी माता को क्षत्रिय शक्ति सम्पन्न  तेजस्वी पुत्र होगा"। सत्यवती यह दोनों चरु-भाग प्राप्त कर बड़ी प्रसन्न हुई।
अपनी श्रेष्ठ पत्नी सत्यवती को ऐसा निर्देश देकर महर्षि ऋचीक तपस्या के लिये अरण्य में चले गये। इसी समय महाराज गाधि भी तीर्थ दर्शन के प्रसंगवश अपनी कन्या सत्यवती का समाचार जानने आश्रम में आये। इधर सत्यवती ने पति द्वारा प्राप्त चरु के दोनों भाग माता अपनी माँ दे दिये और दैवयोग से माता द्वारा चरु-भक्षण में विपर्यय हो गया। जो भाग सत्यवती को प्राप्त होना था, उसे माता ने ग्रहण कर लिया और जो भाग माता के लिये उद्दिष्ट था, उसे सत्यवती ने ग्रहण कर लिया। ऋषि-निर्मित चरु का प्रभाव अक्षुण्ण था, अमोघ था। चरु के प्रभाव से गाधिपत्नी तथा देवी सत्यवती दोनों में गर्भ के चिह्न स्पष्ट होने लगे।
इधर ऋचीक मुनि ने योग बल से जान लिया कि चरु भक्षण में विपर्यय हो गया है। यह जानकर सत्यवती निराश हो गयीं, परन्तु मुनि ने उन्हें आश्वस्त किया। यथा समय सत्यवती की परम्परा में पुत्र रूप में जमदग्नि पैदा हुए और उन्हीं के पुत्र परशुराम हुए। दूसरी ओर गाधि पत्नी ने चरु के प्रभाव से दिव्य ब्रह्मशक्ति-सम्पन्न महर्षि विश्वामित्र को पुत्र  रूप में प्राप्त किया। 
महर्षि विश्वामित्र के अनेक पुत्र-पौत्र हुए, जिनसे कुशिक वंश विख्यात हुआ। ये गोत्रकार ऋषियों में परिगणित हैं। आज भी सप्तर्षियों में स्थित होकर महर्षि विश्वामित्र जगत के कल्याण में निरत हैं।[पुराण, महाभारत]
उन्होंने ब्राह्मणत्व की प्राप्ति हेतु तपस्या की। भूख लगने पर चाण्डाल के घर में घुसकर सूअर का माँस चुराकर खाया। राजा हरिश्चन्द्र को परीक्षा के बहाने पीड़ित किया। तपस्या भंगकर शकुन्तला पैदा की। त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने का प्रयास किया। गुरु वशिष्ठ से अकारण वैर किया। भगवान् श्री राम और लक्ष्मण जी को लेकर जंगलों में राक्षसों का वध कराया। भगवान् श्री राम  लक्ष्मण को लेकर माता सीता स्वयंवर में गये जहाँ राजा जनक की पुत्रियों का विवाह राजा दशरथ के  सम्पन्न हुआ। एक महान तपस्वी के रूप में उन्होंने ब्रह्मऋषि पद प्राप्ति का सफल प्रयास किया मगर मोक्ष या ईश्वर भक्ति की इच्छा नहीं की।
वशिष्ठ जी के कहने पर ही महाराज दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। विश्वामित्र ने इनके 100 पुत्रों को मार दिया था, फिर भी इन्होंने विश्वामित्र को माफ कर दिया। विश्वामित्र की उनके साथ जन्मजात शत्रुता थी। एक समय में तो इन दोनों ने कुक्कुट-मुर्गे के रूप में भी युद्ध किया। विश्वामित्र उनसे स्पर्धा के कारण ही ब्रह्मऋषि बनना चाहते थे।
ऋषि भले ही बन गये, मगर उनकी मूल प्रवृत्तियाँ उनमें कायम रहीं। उनमें ब्राह्मणोचित गुणों अभाव बना ही रहा।
वैश्वामित्र मण्डल का वैशिष्ट्य :: वेद की महिमा अनन्त है। विश्वामित्र के द्वारा दृष्ट यह तृतीय मण्डल विशेष महत्त्व का है, क्योंकि इसी तृतीय मण्डल में ब्रह्म गायत्री का जो मूल मन्त्र है, वह उपलब्ध होता है। इस ब्रह्म गायत्री मन्त्र के मुख्य द्रष्टा तथा उपदेष्टा आचार्य महर्षि विश्वामित्र ही हैं। ऋग्वेद के तृतीय मण्डल के 62वें सूक्त का दसवां मन्त्र गायत्री मन्त्र के नाम से विख्यात है, जो इस प्रकार है :-
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
गायत्री को वेद माता कहा जाता है। 
ये मन्त्रष्टा ऋषि कहलाते हैं। वेद के दस मण्डलों में तृतीय मण्डल, जिसमें 62 सूक्त हैं, इन सभी सूक्तों के द्रष्टा ऋषि विश्वामित्र ही है। इसीलिये तृतीय मण्डल 'वैश्वामित्र मण्डल' कहलाता है। इस मण्डल में इन्द्र, अदिति, अग्निपूजा, उषा, अश्विनी तथा ऋभु आदि देवताओं की स्तुतियाँ हैं और अनेक ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म आदि की बातें विकृत हैं, अनेक मन्त्रों में गो-महिमा का वर्णन है। तृतीय मण्डल के साथ ही प्रथम, नवम तथा दशम मण्डल की कतिपय ऋचा के दृष्टा विश्वामित्र के मधुच्छन्दा आदि अनेक पुत्र हुए हैं।
 
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)