Thursday, July 22, 2021

XXX भगवान् वेद व्यास

भगवान् वेद व्यास
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः। 
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः॥10.37॥ 
वृष्णि वंशियों में वासुदेव पुत्र श्री कृष्ण और पाण्डवों में अर्जुन में हूँ। मुनियों में वेद व्यास और कवियों में कवि शुक्राचार्य भी में ही हूँ।[श्रीमद्भगवद्गीता 10.37] 
I am Shri Krashn, the son of Vasu Dev among the Vrashni clan, Arjun among the Pandavs, Ved Vyas among the saints and Shukrachary among the poets.
भगवान् श्री कृष्ण ने स्वयं को वृष्णि वंश में उत्पन्न विभूति कहा है, न कि अवतार जो कि वे हैं। पाण्डवों में अर्जुन उनकी एक श्रेष्ठ मूर्ति हैं। वेद का चार भागों में विभाजन, पुराण, उपपुराण और महाभारत रचना उनकी श्रेष्ठतम विभूतियाँ हैं, जो कि जन कल्याण की लिए प्रकाशित की गई हैं। धर्म से जुड़ी हुई कोई भी रचना व्यास जी की देन ही मानी जानी चाहिए। शुक्राचार्य को कवि के रूप में उनकी विभूति समझना चाहिए।
The Almighty revealed that HE as the son of  Vasu Dev Ji, in the Vrashni Vanshi-clan & was HIS excellent creation, along with Arjun who took incarnation in the Pandu clan. It might make the purpose of HIS incarnation to Arjun and all those who were listening to HIM delivering the sermon in the battle field of Kurukshetr; clear. Still there are people who do not realise the excellence of the composition of Gita as the Supreme guide for the Kali Yug by Muni Ved Vyas Ji Maha Raj, who was one of HIS incarnations and excellent among the composers. To compare the poets, HE makes it clear that Shukrachary is HIS supreme form as a poet. Therefore, Veds, Puran, Up Puran, Vedant and Maha Bharat should not be considered poetic creations, since they reveal history, science, purpose of life, movement of soul in various incarnations, birth-death etc. Gita has been translated into almost all languages of the world. 
It has been discovered that the translation is inappropriate & not up to the mark in most all cases, sending wrong notions-messages among the masses. Some times, the interpretations too are wrong and misleading.
Its clear that the Bhagwan Shri Krashn & Arjun, both are two forms of the Almighty just like water in two pots.
ज्ञाननिधि वेद व्यास को भगवान् का दर्जा प्राप्त है। उनके पिता का नाम महर्षि पराशर तथा माता का नाम सत्यवती था। जन्म लेते ही वे 8 वर्ष की अवस्था के दिखने लगे और उन्होंने अपनी माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। माता सत्यवती ने उन्हें अपने द्वारा स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर, वन जाने की अनुमति प्रदान की।
यमुनाजी के द्वीप में जन्म होने के कारण भगवान् वेद व्यास को द्वैपायन, सघन कृष्ण वर्ण के कारण कृष्ण, वेदों का विभाजन करने के कारण वेदव्यास तथा बदरी वन में तपस्या करने के कारण बादरायण कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण वेद, पुराण, इतिहास और परमात्म तत्व का ज्ञान, जन्म से ही था। अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर तथा वेदों के गूढ़ रहस्यों को सर्वजन गम्य बनाने के उद्देश्य से भगवान् कृष्ण द्वैपायन ने महापुराणों सहित अनेक पुराण-संहिताओं का प्रणयन किया और विश्व साहित्य के अनुपम ग्रन्थ महाभारत की रचना की, जो अपने विषय-वैभव के कारण भारतीय संस्कृति का विश्वकोश कहा जाता है। 
महाभारत पंचम वेद के नाम से प्रसिद्ध है। इन ग्रन्थ ने कलियुग में मनुष्यों द्वारा जीवन यापन करने का मार्ग प्रशस्त करता है और प्रशासन की बारीक नीतियों की व्याख्या करता है। श्रीमद्भागवत के रूप में भक्ति का सार सर्वस्व इन्होंने मानव मात्र को सुलभ कराया और ब्रह्मसूत्र के रूप में तत्वज्ञान का अनुपम ग्रन्थ प्रदान किया। व्यास-स्मृत्ति के द्वारा भगवान् वेद व्यास ने मनुष्योचित जीवनचर्या का उपदेश किया, जिसका फल लोक-परलोक की सिद्धि है।
व्यासजी ने विपत्ति ग्रस्त पाण्डवों की समय-समय पर पूरी सहायता करते की। इन्होंने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे संजय ने महाभारत का युद्ध प्रत्यक्ष देखने के साथ-साथ परमात्मा श्री कृष्ण के मुखारविन्द से निःसृत श्रीमद्भगवद्गीता का भी श्रवण किया। बाद में भगवान् श्री कृष्ण के कहने पर उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश गणेश जी महाराज को किया और उन्होंने इसे लिपिबद्ध किया। 
महर्षि व्यास की शक्ति अलौकिक थी। महाभारत युद्ध के महाविनाश से धर्मराज युधिष्ठिर तथा पुत्र शोक से धृतराष्ट्र अत्यन्त व्याकुल और आतुर थे। उन्होंने व्यास जी से अपने मरे हुए कुटुम्बियों और का स्वजनों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि व्यास के आदेशानुसार धृतराष्ट्र आदि गंगा तट पर पहुँचे। व्यास जी ने गंगाजल में प्रवेश किया और दिवंगत योद्धाओं को पुकारा। जल में युद्ध काल जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। देखते ही देखते दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबके वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत् थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने के दिव्य लोकों को चले गये। 
महर्षि व्यास अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। आद्य शंकराचार्य, सुरेश्वराचार्य एवं मध्वाचार्य आदि को उनके दर्शन हुए थे।
This statue was given to Prajapati Sutpa & his wife Prashni in Swayambhu Manvantar, by Brahma Ji. They worshipped Almighty and got the boon that the Almighty will take incarnations as their son. (1) Pranshni Garbh-their son, (2). Kashyap & Aditi, (3). Vasudev & Devki. Vasudev got this statue from Dhoumy and it was worshipped in Dwarka. From there it was brought to Trichy by Dev Gur Brahaspati.
    
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