CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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राजा भोज और चार चोर :: एक बार रात के समय चार चोर धारा नगरी में चोरी करने निकले। राजा भोज भी कभी-कभी भेष बदल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए महल से बाहर निकलते थे। उस रात राजा भोज जब घूम रहे थे तो उनकी मुलाक़ात चार चोरों से हुई। चोरों ने भेष बदले राजा से पूछा कि तू कौन है? राजा ने कहा, "जो तुम हो वही मैं भी हूँ"। राजा समझ गये कि ये चोर हैं। सो उन्होंने उन चोरों से कहा, "यह भी खूब रही, भगवान् संयोग मिलाता है, तो इस तरह भी मिलाता है; मैं भी चोर हूँ। आज रात को हम पाँचों मिल कर चोरी करते हैं और जो माल मिलेगा उसे पाँच जगह बराबर बराबर बाँट लेंगे"। चोरों ने कहा, "तुममें क्या गुण है? हम तुम्हें साथ क्यों ले जाएँ और तुम्हें क्यों हिस्सा दें"?
राजा ने कहा, "पहले तुम बताओ कि तुममे क्या क्या गुण हैं, फिर मैं अपना गुण बताऊंगा"?
उनमें से एक चोर ने कहा, "मैं आँख बंद करके बता सकता हूँ कि धन कहाँ पड़ा है"।
दूसरे ने कहा, "मुझे देखते ही सब पहरेदारों को नींद आ जाती है"।
तीसरे ने कहा, "मैं जिस ताले को देख लेता हूँ, वह खुद-ब-खुद खुल जाता है"।
चौथे ने कहा, "मैं जिस व्यक्ति को एक बार देख लूँ, उसे मैं अँधेरे में भी पहचान सकता हूँ"।
इस पर राजा ने कहा, "फिर तो हमें धन मिलने मैं कोई अड़चन नहीं होगी"।
चोरों ने कहा, "सो तो ठीक है, लेकिन तुम भी तो अपना गुण बताओ, जिसके बल पर तुम हमसे अपना हिस्सा माँग रहे हो"।
राजा बोले, "न्यायाधीश के सामने मैं जाकर अगर खड़ा हो जाऊं तो उसकी मति फिर जाती है और वह अपनी सुनाई हुयी फाँसी की सजा भी रद्द कर देता है"।
चोरों ने कहा, "तब तो ठीक है, अब पकडे जाने पर सजा का भय भी नहीं रहेगा"।
पाँचों चोरी करने के लिए निकले। पहले चोर ने आँखें बंद कर के बताया कि राजा के तहखाने में फलां जगह माल रखा है। पहले वहीँ चला जाए।
पाँचों राजा के तहखाने में चोरी करने पहुँचे। वहाँ संगीनों का पहरा था। दूसरा चोर आगे बढ़ा तो पहरेदार अपने आप गहरी निद्रा में चले गए। अब तीसरा चोर आगे बढ़ा, तो जितनी भी तिजोरियां वहाँ रखी थीं, उन सबके ताले अपने आप खुल गए।
चोरों ने खूब धन बटोरा और गठरियों में बाँध कर बाहर निकल आये। दूर जंगल में लाकर सारा धन एक गहरा गड्ढा खोद कर गाड़ दिया और तय किया कि कल इसे आपस में बाँट लेंगे। चारों चोर अपने अपने घर चले गए और राजा भी अपने महल में आकर सो गये।
प्रातः होते ही हल्ला मच गया कि तहख़ाना टूट गया है और बहुत सा धन चोरी चला गया है। पहरेदारों को बुलाया गया। पूछने पर उन्होंने कहा, "महाराज, हमें तो कुछ पता नहीं कि यह चोरी कब और कैसे हुई? दोषी हम जरूर हैं और इसके लिए उचित सजा पाने के लिए हम इंकार नहीं करते, लेकिन सही बात तो यह है कि हम सारे लोगों को एक साथ ही ऐसी गहरी निद्रा आ गयी जैसे किसी ने जादू कर दिया हो"।
विशेषज्ञों ने बताया कि ताले इतने मजबूत हैं और इतनी कारीगरी से बनाए गए हैं कि न तो ये सहज ही तोड़े जा सकते हैं, न इन्हें खोलने के लिए दूसरी चाबी ही बनाई जा सकती है. तब सवाल उठता है कि यह काण्ड हो कैसे गया।
राजा ने कहा, "जो हुआ सो हुआ, किन्तु ऐसा लगता है कि कोई दैवी चमत्कार या देवी घटना हुयी है, लेकिन फिर भी इन चोरों का पता लगाने के लिए कोशिश तो होनी ही चाहिए"। चारों तरफ आदमी दौड़ाए गए। संयोग की बात कि चारों चोर एक ही जगह पकड़ में आ गए। वे न्यायाधीश के सामने पेश किये गए और न्यायाधीश ने उन्हें सूली पर चढाने का हुक्म दिया।
चोरों को सूली पर लटकाने के लिए जब ले जाया जाने वाला था, तो राजा भोज भी न्यायाधीश के बगल में आ कर बैठ गये। राजा को देखते ही चौथा चोर जोर से चिल्लाया, "अरे तुम हो! अच्छी बात है, "हम चारों ने तो अपने करतब, अपनी कला तुम्हें दिखा दी, अब तुम इस तरह पत्थर की मूरत बने क्या देख रहे हो? तुम भी अपना करतब दिखाओ। फिर दोस्ती किस दिन काम आयेगी"।
सुन कर राजा भोज हँसे और उनकी सूली की सजा रद्द कर दी। चोरों को अपने पास बैठाया और उनसे कहा कि तुम जैसे गुणी आदमियों को चोरी जैसा नीच धंधा कभी नहीं करना चाहिए; बल्कि सुसंस्कृत नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहिए. तुम लोग आज से मेरे पास रहो।
चोरों ने उस दिन से चोरी करना छोड़ दिया और वे राजा की कृपा सम्मानपूर्वक जीवन बिताने लगे।
ईमानदार डकैत :: बात उस ज़माने की बात है जब बलजी भुर्जी के नाम से राजस्थान का ज़र्रा ज़र्रा खौफ खाता था। बलजी भुर्जी का गिरोह डकैती के लिए जितना कुख्यात था, उससे कहीं ज्यादा अपने नियमों के लिए जाना जाता था. बलजी भुर्जी की इस धाक को देख कर एक अन्य डकैत नानिया के मन में उससे फ़ायदा उठाने की इच्छा पैदा हुई। वह जब तब किसी असहाय को लूट लेता और खुद को बलजी बताता। भय से लोग चुप रह जाते,पर चौंकते अवश्य कि आखिर बलजी भुर्जी की मति को क्या हो गया है?!
सेठ खेतसीदास पौद्दार बेहद सज्जन और दयालु प्रवृत्ति के इंसान थे। इधर एक बढ़िया नस्ल का ऊँट सेठ जी खरीद कर लाये थे। एक दिन सेठ जी अकेले ही ऊँट की सवारी कर रहे थे। सर्दी के सिहरन भरे दिनों में एक गरीब बूढ़े को देख कर जो उनसे रुकने की प्रार्थना कर रहा था, सेठ जी रूक गए।
सेठ जी ने ऊँट को बैठने का संकेत किया। उन्होंने उस व्यक्ति को भी ऊँट पर बिठा लिया। कुछ दूर ही आगे चले होंगे कि सेठ जी को जोर का धक्का लगा और वे जमीन पर आ गिरे। क्षण भर को सेठ जी चौंके लेकिन यह देख कर उन्हें हैरानी और डर भी लगा कि जिसे उन्होंने दया कर के अपने साथ बिठाया था वह एक डाकू था। अब वे क्या करते। उन्होंने स्वर का नाम पूछा तो उसने कहा कि वह बालजी भुर्जी का आदमी है। सेठ जी ने उस व्यक्ति से प्रार्थना की कि वह इस घटना का ज़िक्र किसी से न करे वरना लोग किसी पर भरोसा नहीं करेंगे और गरीबों की मदद के लिए आगे नहीं आयेंगे।
बात को दबाये रकने की कोशिश सेठ जी ने तो बहुत की लेकिन किसी प्रकार इस घटना की जानकारी बालजी भुर्जी को लग गई कि सेठ जी का ऊँट नानिया रूंगा के पास है। धीरे धीरे सेठ जी के दिमाग़ से यह घटना निकल गई। पर एक रोज वह चौंक गए। घर के दालान में ऊँट बँधा दिखाई दिया, वही ऊँट जिसे डाकू ले गया था। पास जा कर देखा तो उसके गले में एक तख्ती बढ़ी थी और लिखा हुआ था, "सेठ खेतसी दास को बलजी भूरजी की भेंट। हम डाकू हैं, पर धोखेबाज कतई नहीं"!
चौंकाने वाली बात तो यह थी कि जो आदमी ऊँट ले गया था, वह बालजी भूरजी का आदमी नहीं था। सेठ जी इसी सोच में डूबे थे कि किसी ने बताया, "झूंझनू के के पास की पहाड़ी की तलहटी में नानिया रूंगा की लाश पड़ी है"! सभी समझ गए कि असली डकैत कौन था।
सुदर्शन ने यही कहानी डाकू खड़गसिंह के नाम से लिखी थी, मगर चोरी गया घोडा था न कि ऊँट।
पूर्व सूचना :: मिस्र का एक शासक एक रात स्वप्न में तैरता हुआ नील नदी पार कर गया। सुबह नींद टूटते ही उसने स्वयं को विश्व का सर्वश्रेष्ठ तैराक घोषित करवा दिया और इस सिलसिले में एक भव्य समारोह का आयोजन कर डाला। मंत्री, प्रजा और दूसरे लोग चकित थे। उन्हें शासक की बुद्धि पर तरस आ रहा था। एक लोकप्रिय जादूगर को इस अनोखे समारोह का पता चला तो वह तुरन्त शासक की सेवा में उपस्थित होकर नम्र स्वर में बोला, "प्रजापति, आपने कौन सी नील नदी तैर कर पार की थी"। "तू पागल हो गया है क्या", शासक दहाड़ा,"नील नदी मिस्र में एक ही है"। "लेकिन महाराज, यह नील नदी तो पिछले तीन दिन से सूखी पड़ी है"! उसने हाथ मलते हुए कहा। उसने दृष्टि भ्रम जादू का सहारा लिया था। सिंचाई मंत्री ने उसका समर्थन किया। शासक ने तुरन्त नील नदी का निरीक्षण किया। नदी सचमुच सूखी पड़ी थी।कीचड़ ही कीचड़ नज़र आ रहा था। शासक ने दरबार में लौटते ही घोषणा की, "सिंचाई मंत्री का सर कलम कर दिया जाए! अगर मंत्री हमें नदी के सूखने की पूर्व-सूचना दे देता तो हम तैर कर हरगिज़ पार करने न जाते"। फाँसी के समय जादूगर ने शासक से विनम्र निवेदन किया, "प्रजापति, अब नील नदी पानी से लबालब भर गई है। कृप्या सिंचाई मंत्री को क्षमा कर दीजिये और बेशक नदी को तैर कर पार कीजिये"। उस दिन लोगों ने सांँस रोक कर एक भयानक दृश्य देखा। जादूगर और सिंचाई-मंत्री को एक साथ नदी में डुबाया जा रहा था।
ईमानदार डकैत :: बात उस ज़माने की बात है जब बलजी भुर्जी के नाम से राजस्थान का ज़र्रा ज़र्रा खौफ खाता था। बलजी भुर्जी का गिरोह डकैती के लिए जितना कुख्यात था, उससे कहीं ज्यादा अपने नियमों के लिए जाना जाता था. बलजी भुर्जी की इस धाक को देख कर एक अन्य डकैत नानिया के मन में उससे फ़ायदा उठाने की इच्छा पैदा हुई। वह जब तब किसी असहाय को लूट लेता और खुद को बलजी बताता। भय से लोग चुप रह जाते,पर चौंकते अवश्य कि आखिर बलजी भुर्जी की मति को क्या हो गया है?!
सेठ खेतसीदास पौद्दार बेहद सज्जन और दयालु प्रवृत्ति के इंसान थे। इधर एक बढ़िया नस्ल का ऊँट सेठ जी खरीद कर लाये थे। एक दिन सेठ जी अकेले ही ऊँट की सवारी कर रहे थे। सर्दी के सिहरन भरे दिनों में एक गरीब बूढ़े को देख कर जो उनसे रुकने की प्रार्थना कर रहा था, सेठ जी रूक गए।
सेठ जी ने ऊँट को बैठने का संकेत किया। उन्होंने उस व्यक्ति को भी ऊँट पर बिठा लिया। कुछ दूर ही आगे चले होंगे कि सेठ जी को जोर का धक्का लगा और वे जमीन पर आ गिरे। क्षण भर को सेठ जी चौंके लेकिन यह देख कर उन्हें हैरानी और डर भी लगा कि जिसे उन्होंने दया कर के अपने साथ बिठाया था वह एक डाकू था। अब वे क्या करते। उन्होंने स्वर का नाम पूछा तो उसने कहा कि वह बालजी भुर्जी का आदमी है। सेठ जी ने उस व्यक्ति से प्रार्थना की कि वह इस घटना का ज़िक्र किसी से न करे वरना लोग किसी पर भरोसा नहीं करेंगे और गरीबों की मदद के लिए आगे नहीं आयेंगे।
बात को दबाये रकने की कोशिश सेठ जी ने तो बहुत की लेकिन किसी प्रकार इस घटना की जानकारी बालजी भुर्जी को लग गई कि सेठ जी का ऊँट नानिया रूंगा के पास है। धीरे धीरे सेठ जी के दिमाग़ से यह घटना निकल गई। पर एक रोज वह चौंक गए। घर के दालान में ऊँट बँधा दिखाई दिया, वही ऊँट जिसे डाकू ले गया था। पास जा कर देखा तो उसके गले में एक तख्ती बढ़ी थी और लिखा हुआ था, "सेठ खेतसी दास को बलजी भूरजी की भेंट। हम डाकू हैं, पर धोखेबाज कतई नहीं"!
चौंकाने वाली बात तो यह थी कि जो आदमी ऊँट ले गया था, वह बालजी भूरजी का आदमी नहीं था। सेठ जी इसी सोच में डूबे थे कि किसी ने बताया, "झूंझनू के के पास की पहाड़ी की तलहटी में नानिया रूंगा की लाश पड़ी है"! सभी समझ गए कि असली डकैत कौन था।
सुदर्शन ने यही कहानी डाकू खड़गसिंह के नाम से लिखी थी, मगर चोरी गया घोडा था न कि ऊँट।
पूर्व सूचना :: मिस्र का एक शासक एक रात स्वप्न में तैरता हुआ नील नदी पार कर गया। सुबह नींद टूटते ही उसने स्वयं को विश्व का सर्वश्रेष्ठ तैराक घोषित करवा दिया और इस सिलसिले में एक भव्य समारोह का आयोजन कर डाला। मंत्री, प्रजा और दूसरे लोग चकित थे। उन्हें शासक की बुद्धि पर तरस आ रहा था। एक लोकप्रिय जादूगर को इस अनोखे समारोह का पता चला तो वह तुरन्त शासक की सेवा में उपस्थित होकर नम्र स्वर में बोला, "प्रजापति, आपने कौन सी नील नदी तैर कर पार की थी"। "तू पागल हो गया है क्या", शासक दहाड़ा,"नील नदी मिस्र में एक ही है"। "लेकिन महाराज, यह नील नदी तो पिछले तीन दिन से सूखी पड़ी है"! उसने हाथ मलते हुए कहा। उसने दृष्टि भ्रम जादू का सहारा लिया था। सिंचाई मंत्री ने उसका समर्थन किया। शासक ने तुरन्त नील नदी का निरीक्षण किया। नदी सचमुच सूखी पड़ी थी।कीचड़ ही कीचड़ नज़र आ रहा था। शासक ने दरबार में लौटते ही घोषणा की, "सिंचाई मंत्री का सर कलम कर दिया जाए! अगर मंत्री हमें नदी के सूखने की पूर्व-सूचना दे देता तो हम तैर कर हरगिज़ पार करने न जाते"। फाँसी के समय जादूगर ने शासक से विनम्र निवेदन किया, "प्रजापति, अब नील नदी पानी से लबालब भर गई है। कृप्या सिंचाई मंत्री को क्षमा कर दीजिये और बेशक नदी को तैर कर पार कीजिये"। उस दिन लोगों ने सांँस रोक कर एक भयानक दृश्य देखा। जादूगर और सिंचाई-मंत्री को एक साथ नदी में डुबाया जा रहा था।
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