Monday, December 7, 2015

ANGIRA-SON OF BRAHA JI अंगिरा (ब्रह्मा 1)*

अंगिरा
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
महर्षि अंगिरा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं तथा ये गुणों में ब्रह्मा जी के समान ही हैं। इन्हें प्रजापति भी कहा गया है। सप्तर्षियों में भी इनका नाम है। इनके दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्र शक्ति की विशेष प्रतिष्ठा है। इनकी पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति (मतान्तर से श्रद्धा) थीं, जिनसे इनके वंश का विस्तार हुआ। ये मन्त्रद्रष्टा, योगी, संत तथा महान भक्त हैं। 
ऋग्वेद में उनके तथा उनके वंशधरों तथा शिष्य-प्रशिष्यों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा से सम्बन्धित वेश और  गोत्रकार ऋषि ऋग्वेद के नवम मण्डल के द्रष्टा हैं। नवम मण्डल के साथ ही ये अंगिरस ऋषि प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि अनेक मण्डलों के तथा कतिपय सूक्तों के द्रष्टा ऋषि हैं। जिनमें से महर्षि कुत्स, हिरण्यस्तूप, सप्तगु, नृमेध, शंकपूत, प्रियमेध, सिन्धुसित, वीतहव्य, अभीवर्त, अंगिरस, संवर्त तथा हविर्धान आदि मुख्य हैं।
ऋग्वेद का नवम मण्डल जो 114 सूक्तों में निबद्ध हैं, पवमान-मण्डल के नाम से विख्यात है। इसकी ऋचाएँ पावमानी ऋचाएँ कहलाती हैं। इन ऋचाओं में सोम देवता की महिमा परक स्तुतियाँ हैं, जिनमें यह बताया गया है कि इन पावमानी ऋचाओं के पाठ से सोम देवताओं का आप्यायन होता है।
इनकी पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति थीं जिनसे इनके वंश का विस्तार हुआ। 
उतथ्य और ऋषि संवर्त भी महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। वेदों के विचारों के साथ ही अपने नाम से अंगिरा स्मृति की रचना की थी। अंगिरा स्मृति में सुंदर उपदेश, धर्मा चरण की शिक्षा व्याप्त है। इसके अनुसार बिना कुशा के धर्म, अनुष्ठान, बिना जल स्पर्श के दान, संकल्प, बिना माला के सँख्या हीन जाप ही यह सब निष्फल होते हैं। 
उनकी तपस्या और उपासना इतनी तीव्र थी कि इनका तेज और प्रभाव अग्नि की अपेक्षा बहुत अधिक था। उस समय अग्निदेव जल में रहकर तपस्या कर रहे थे। तब उन्होंने देखा कि मेरी तपस्या और प्रतिष्ठा अंगिरा ऋषि के सामने तुच्छ हो  रही है तो वे यह देखकर दु:खी हो गए। अग्निदेव महर्षि अंगिरा के पास गए और उन्होंने कहा कि मेरा तेज आपकी तेज के सामने बहुत ही फीका पड़ गया है। अब मुझे कोई अग्नि नहीं कहेगा। इसके बाद महर्षि अंगिरा ने उन्हें सम्मान पूर्वक देवताओं को हवी पहुँचाने का कार्य सौंपा और साथ ही पुत्र रूप में अग्नि का वरण किया। 
युग युगान्तर में भगवान् व्यास के रूप में अवतार ग्रहण करते हैं। वराह कल्प में वेदों के विभाजक पुराणों के प्रदर्शन और ज्ञान मार्ग के उपदेश का अंगिरा  भी व्यास थे। जब वराह कल्प के नवे द्वापर में महादेव ने ऋषभ नाम से अवतार ग्रहण किया था, उस समय उनके पुत्र रूप में महर्षि अंगिरा थे। भगवान् श्री कृष्ण ने व्याघ्र पाद ऋषि के आश्रम में महर्षि अंगिरा से पाशुपत योग की प्राप्ति के लिए बहुत कड़ी तपस्या की थी।[शिव पुराण]
अग्निवायुर्विभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्मा सनातनम्।
दुदोह यज्ञसिद्धयर्थमृग्यजु: सामलक्षणम्॥
ब्रह्मा जी ने यज्ञादि करने के लिये अग्नि, वायु और सूर्य से सनातन (नित्य) ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद को दोहन कर प्रकट किया।[मनुस्मृति 1.23] 
Brahma Ji (read Brahm-the God, Almighty; since Brahma Ji is just a component of HIM) extracted Rig Ved, Yajur Ved and Sam Ved from Agni-Holy fire, Air-wind and Sury-Sun for Holi sacrifices.
वेद ईश्वर की वाणी है। वेदों को भगवान् श्री हरी विष्णु ने ब्रह्मा जी को दिया। ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद को वेदत्रयी भी कहा जाता है। इस वाणी को सर्वप्रथम क्रमश: निम्न 4 ऋषियों ने सुना :- (1). अग्नि, (2). वायु, (3). अंगिरा और (4). आदित्य।
परंपरागत रूप से इस ज्ञान को स्वयम्भुव मनु ने अपने कुल के लोगों को सुनाया, फिर स्वरोचिष, फिर औत्तमी, फिर तामस मनु, फिर रैवत और फिर चाक्षुष मनु ने इस ज्ञान को अपने कुल और समाज के लोगों को सुनाया। बाद में इस ज्ञान को वैवश्वत मनु ने अपने पुत्रों को दिया। इस तरह परंपरा से प्राप्त यह ज्ञान गुरु संदीपन के माध्यम से भगवान् श्री कृष्ण और बलराम तक पहुँचा।
महर्षि अंगिरा चार वेदज्ञ ऋषियों यथा, अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य में से एक हैं, जिन्होंने सृष्टि के आदि काल में सर्वप्रथम सत्य धर्म प्रति पादक, सकल विद्या युक्त वेदों का उपदेश करने वाले ब्रह्मादि गुरुओं के भी गुरु, जिसका नाश कभी नहीं होता; उस परमेश्वर के आज्ञा पर वेद ज्ञान को सुनकर सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और फिर लोगों के लिए प्रकाशित किया। बाद में इनकी वाणी को बहुत से ऋषियों ने वैदिक ऋचाओं को रचा और विस्तार दिया। 
मरीचि मत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम्। 
प्रचेतसं वशिष्ठन् च भृगुं नारदमेव च॥
मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु और नारद ये दस महऋषि हैं।[मनु स्मृति 1.35]
The Mahrishis created by Brahma Ji were :- Marichi, Atri, Angira, Pulasty, Pulah, Kratu, Pracheta, Vashishth, Bhragu and Narad.
श्रुतीरथर्वाङ्गिरसीः कुर्यादित्यविचारयन्।
वाक्षस्त्रं वै ब्राह्मणस्य तेन हन्यादरीन् द्विजः
अथर्ववेद में अङ्गिरा से कही हुई (दुष्टों के नाशार्थ) श्रुति को बिना विचार किये करे। ब्राह्मण की वाणी शस्त्र है, उसी से शत्रुओं का नाश करे।[मनु स्मृति 11.33] 
The religious-pious, devoted Brahmn should practice the hymn uttered in Atharv Ved by Angira for destroying the wicked-culprit without going into its merits or demerits, without hesitation. His voice, speech, utterances are his weapon to destroy-perish the enemy.
आर्दव वसु प्रभाष को अंगिरा की पुत्री बृहस्पति की बहिन योगसिद्ध ब्याही गई और अष्टम वसु प्रभाष से जो पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम विश्वकर्मा हुआ जो शिल्प प्रजापति कहलाया। भाद्रपद शुक्ल पंचमी को महर्षि अंगिरा जयंती वैदिक परम्परा में भक्तिपूर्ण वातावरण में मनाई जाती है। इस तिथि को ऋषि पंचमी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है।[वायुपुराण, उत्तर भाग 22]
अग्नेर्ऋग्वेदों वायोर्यजुर्वेद: सुर्य्यात् समावेद:।
अग्नि से ऋग्वेद, वायु से यजुर्वेद ओर सूर्य से सामवेद प्रकट हुआ।[शतपथ ब्राह्मण 11.5.8.3]
यदथर्वान्गिरस: स य एव विद्वानथर्वान्गिरसो अहरह: स्वाध्यायमधीते।
जो अर्थव वेद वाला अंगिरा मुनि वह जो इस प्रकार जानता है कि अर्थवा अंगिरा का हमेशा स्वाध्याय करता है।[शतपथ ब्राह्मण 11.5.6-7]
अग्निर्ऋषि: पवमान: पाचजन्य: पुरोहित:।
जो पवित्र सब मनुष्यों का पुराहित है, वह ऋषि अग्नि है।[ऋग्वेद 9.66.20]
यस्मिन्नश्वास ऋषभास उक्षणो वशामेषा अवसृष्टास आहूता:।
कीलालपे सोमपृष्ठाय वेधसे हृदामर्ति जनये चारुमग्नये
(यस्मिन) जिस सृष्टि में परमात्मा ने (अश्वास:) अश्व (ऋषभास) सांड (उक्ष्ण) बैल (वशा) गाय (मेषा:) भेड़, बकरियाँ (अवस्रष्टास) उत्पन्न किये और (आहूता) मनुष्यों को प्रदान कर दिए। वही ईश्वर (अग्नेय) अग्नि के लिए (कीलालपो) वायु के लिए (वेधसे) आदित्य के लिए (सोमपृष्ठाय) अंगिरा के लिए (हृदा) उनके ह्रदय में (चारुम) सुन्दर (मतिम) ज्ञान (जनये) प्रकट करता है।[ऋग्वेद 10.91.14]
प्रजापतिस्सोमोअग्निविश्वदेवा ब्रह्मास्वयम्भू पंचकाण्डऋषय:।
यहाँ अग्नि ओर सोम को ऋषि कहा है जो कि सोम अंगिरा का पर्याय है।[काण्ड ऋषि, आपस्तम्ब गृह सूत्र 4.3]
    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

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