Wednesday, March 22, 2017

SHAKUNTALA शकुंतला की कथा

SHAKUNTALA शकुंतला की कथा 
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM  By :: Pt. Santosh Bhardwaj  
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शकुंतला का जन्म  ऋषि विश्वामित्र और मेनका नाम की अप्सरा के संयोग से हुआ, जिसे देवताओं ने ऋषि विश्वामित्र का तप भंग करने के लिये भेज था। मेनका ने उसे जन्म देकर त्याग दिया। कण्व ऋषि ने उसे पड़ा हुए पाया और पुत्री के रूप में उसका लालन-पालन किया। एक दिन राजा दुष्यन्त शिकार करते हुए वन में गये और साथियों से बिछड़ गये। वहाँ भटकते समय उन्होंने शकुंतला को देखा। मोहित होकर उससे गान्धर्व विवाह किया और उसके साथ सहवास करके, यह वचन देकर लौट गये कि राजधानी में पहुँच कर उसे बुलवा लेंगे। 
महाभारत कथा - राजा दुष्यंत और शकुंतला | Mahabharata Katha -King Dushyant and Shakuntalaउस समय तक शकुंतला गर्भवती हो चुकी थी। जब ऋषि कण्व वापस तीर्थ यात्रा से लौटे तो उनको  पूरी कहानी शकुंतला ने बताई। ऋषि ने शकुंतला को अपने पति के पास जाने को कहा, क्योंकि विवाहित कन्या को पिता के घर रहना वो उचित नही मानते थे।  शकुंतला सफर के लिए निकल पड़ी, लेकिन मार्ग में एक सरोवर में पानी पीते वक्त उनकी अंगूठी तालाब में गिर गयी, जिसे एक मछली ने निगल लिया। शकुंतला जब राजा दुष्यंत के पास पहुँचे तो ऋषि कण्व के शिष्यों ने शकुंतला का परिचय दिया। राजा दुष्यंत ने शकुंतला को पत्नी मानने से अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वो दुर्वासा ऋषि के श्राप से सब कुछ भूल चुके थे।  शकुंतला निराश होकर राजमहल के बाहर निकली तो उसकी माँ मेनका ने उसे कश्यप ऋषि के आश्रय में रखा जहाँ शकुन्तला ने एक पुत्र को जन्म दिया। 
कुछ दिनों के बाद एक मछुआरा मछली के पेट से मिली अँगूठी राजा को भेंट करने आया, जिसको देखते ही दुष्यंत को शकुन्तला की याद आई। महाराज ने तुरंत शकुंतला की खोज करने के लिए सैनिको को भेजा लेकिन कही पता नही चला। कुछ समय बाद इंद्रदेव के निमन्त्रण पर दुष्यंत देव-दानव युद्ध में भाग लेने के लिये अमरावती-स्वर्ग चले गये। संग्राम में विजय के बाद आकाश मार्ग से वापस लौटते वक्त उन्होंने कश्यप ऋषि के आश्रम में एक सुंदर बालक को खेलते देखा। वह बालक शकुंतला का पुत्र भरत था। 
जब उस बालक को राजा दुष्यंत ने देखा तो उसे देखकर उनके मन में प्रेम उमड़ आया। वो जैसे ही उस बालक को गोद में उठाने के लिए खड़े हुए तो शकुंतला की सहली ने बताया कि अगर वो इस बालक को छुएंगे तो उसकी भुजा में बंधा काला डोर साप बनकर उनको डंस लेगा। राजा दुश्न्त ने उस बात का ध्यान नहीं दिया और बालक को गोद में उठा लिया, जिससे उस बालक के भुजा में बंधा काला डोरा टूट गया, जो उसके पिता की निशानी थी। शकुंतला की सहेली ने सारी बात शकुंतला को बताई, तो वो दौडती हुयी राजा दुष्यंत के पास आयी। राजा दुष्यंत ने भी शकुंतला को पहचान लिया और अपने किये की क्षमा माँगी और उन दोनों को अपने राज्य ले गये। महाराज दुष्यंत और शकुंतला ने उस बालक का नाम भरत रखा जो आगे चलकर एक महान प्रतापी सम्राट बना। 
ब्रह्मा जी से अत्रि का जन्म हुआ था।  इसके बाद अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रदेव से बुध और बुधदेव से इलानंदन पुरुरुवा का जन्म हुआ।  पुरुरवा से आयु, उसके बाद आयु से राजा नहुष और उसके बाद राजा नहुष से ययाति का जन्म हुआ। ययाति से पुरु का जन्म हुआ, जिनसे  पुरु वंश का उदय हुआ था। पुरु के वंश में ही आगे चलकर महान प्रतापी सम्राट राजा भरत का जन्म हुआ। राजा भरत के वंश में ही आगे चलकर राजा कुरु हुए जो महाभारत कथा की नीव माने जाते है। 
पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत की गणना महाभारत में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। इनका एक नाम 'सर्वदमन' भी था क्योंकि इन्होंने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था। वे समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर लेते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने यमुना, सरस्वती तथा गंगा के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे। राज्यपद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। प्रतिष्ठान पुर के स्थान पर हस्तिनापुर को राजधानी बनाया। भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। भरत ने कहा-ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं है। अत: भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया।तब देवराज इंद्र ने उन्हें ऋषि देवगुरु वृहस्पति के पुत्र को लेकर दिया जिससे कुरु वंश आगे चला। 

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