Friday, January 15, 2016

xxx GHATOTKACH घटोत्कच

GHATOTKACH घटोत्कच   
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj  
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ॐ गं गणपतये नमः 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
घटोत्कच भीम और राक्षस कन्या हिडिम्बा का पुत्र था। पाँडवों के वंश का वो सबसे बड़ा पुत्र था और महाभारत के युध्द में उसने अहम भूमिका निभाई थी। हिडिम्बा का राक्षसी कुल होने के कारण, उसकी गिनती चंद्र वंशियों में नहीं की गयी, लेकिन उसे कभी भी अन्य पुत्रों से कम महत्वपूर्ण नहीं समझा गया। महाभारत के युद्ध में कर्ण से अर्जुन के प्राणों की रक्षा करने हेतु घटोत्कच ने अपने प्राणों की बलि दे दी।लाक्षाग्रह की घटना के बाद जब पांडव वनों में भटक रहे थे तब कुंती ने विश्राम की इच्छा जाहिर की। कुंती सहित सभी भाई गहरी नींद सो गए और भीम वहाँ पहरे पर बैठ गए। वहीँ पास में हिडिम्ब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिम्बा के साथ रहता था। जब पांडव वहाँ विश्राम कर रहे थे, तो हिडिम्ब को मानवों की गंध मिल गयी और उसने हिडिम्बा को इसका पता लगाने भेजा। जब हिडिम्बा मनुष्यों को खोजती वहाँ तक पहुँची तो वहाँ पर भीम के रूप और बलिष्ठ शरीर को देख कर वो उस पर आसक्त हो गयी। वो एक सुन्दर स्त्री का रूप धर कर भीम के पास गयी और उसे कहा कि वो जल्द से जल्द अपने परिवार के साथ वहाँ से चला जाए, नहीं तो वे सभी उसके भाई के ग्रास बन जाएँगे। भीम ने कहा कि उसका परिवार दिन भर की थकान के बाद विश्राम कर रहा है, इसीलिए वो उन्हें उठा नहीं सकते। भीम ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि उसे किसी से भी घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।
जब हिडिम्बा वापस लौट कर नहीं आयी तो हिडिम्ब स्वयं उसे ढूँढ़ता हुआ वहाँ पर पहुँच गया। क्रोध में वो पहले हिडिम्बा को ही मारना चाहता था, पर भीम ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। हिडिम्ब को भीम की 10,000 हाथियों की शक्ति और गदा युद्ध कौशल के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था। कोलाहल से उनका परिवार उठ ना जाए इसीलिए भीम उसे घसीटता हुआ वहाँ से दूर ले गया।  उन दोनों में ऐसा भयानक युध्द होने लगा कि आसपास के वृक्ष टूट कर गिर पड़े और सभी लोग जाग गए। पहले तो उन्हें कुछ समझ में हीं नहीं आया परन्तु हिडिम्बा ने उन्हें सारी बातें बता दी। भीम को लेकर सभी निश्चिन्त थे। भीम ने जल्द ही हिडिम्ब का अंत कर दिया। 
उसकी मृत्यु के बाद हिडिम्बा ने कुंती से कहा कि उसकी भाई की मृत्यु के बाद वो बिलकुल असहाय हो गयी है। भीम के प्रति अपनी आसक्ति के बारे में भी उसने सब को बताया और उससे विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त की। अपने बड़े भाई युधिष्ठिर के अविवाहित रहते भीम विवाह नहीं कर सकता था। कुंती ने समाधान धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये तो सत्य है कि उनके अविवाहित रहते भीम वैदिक विधि-विधान से विवाह नहीं कर सकता, किन्तु किसी की रक्षा हेतु, धर्म उसे गन्धर्व विवाह करने की छूट देता है। उन्होंने दो शर्तों पर भीम का विवाह हिडिम्बा से करना स्वीकार किया कि एक तो हिडिम्बा प्रत्येक रात्रि उसे उसके परिवार के पास वापस छोड़ जायेगी और दूसरे भीम उसके पास केवल एक संतान होने तक ही रहेगा। इन शर्तों को हिडिम्बा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। 
कुछ समय के बाद हिडिम्बा ने घटोत्कच को जन्म दिया जो पैदा होते ही वयस्क हो गया। उसके सर पर एक भी बाल नहीं था, इसीलिए भीम ने उसका नाम घटोत्कच रखा, जिसका अर्थ होता है, घड़े के समान चिकने सर वाला। शर्त के अनुसार भीम अपने परिवार के पास वापस चला गया। हिडिम्बा ने उसे आसुरी विद्याओं का पूरा ज्ञान-शिक्षा दी। वह माया युद्ध में भी निपुण हो गया। जब घटोत्कच को पांडवों के साथ हुए अन्याय का पता चला तो वो अत्यंत क्रोधित हो उठा। वह उसी समय कौरवों पर आक्रमण करना चाहता था, किन्तु युधिष्ठिर ने उसे समझा बुझा कर शाँत किया। घटोत्कच ने पाँडवों को वचन दिया कि जब भी संकट के समय वे उसे याद करेंगे, वो उपस्थित हो जाएगा। 
महाभारत के युध्द में घटोत्कच ने कौरव सेना का बड़ा विनाश किया।  कौरवों की तरफ से अलम्बुष राक्षस ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, परन्तु अंत में वो घटोत्कच के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ। भीष्म के सेनापति रहते तो भीष्म ने घटोत्कच को जैसे तैसे रोके रखा। किन्तु भीष्म के धराशायी होने के बाद तो उसने कौरव सेना की बड़ी बुरी गत की। भीष्म के पतन के बाद घटोत्कच ने कौरवों की सेना में ऐसा उत्पात मचाया कि दुर्योधन ने बाकी सभी को छोड़ कर, केवल उसे मारने का आदेश दिया। घटोत्कच ने ऐसा हाहाकार मचाया कि अंत में दुर्योधन ने कर्ण से उसे मारने का अनुरोध किया। कर्ण ने दुर्योधन को वचन दिया कि वो आज घटोत्कच को अवश्य मार गिरायेगा लेकिन कर्ण को ये जल्द ही पता चल गया कि घटोत्कच को मारना उसके लिए भी सहज नहीं है। कर्ण ने साधारण बाणों से घटोत्कच को मारने का बड़ा प्रयास किया पर सफल नहीं हो पाया। अंत में दुर्योधन के बार-बार उपालंभ देने पर और अपने वचन की रक्षा के लिए उसने घटोत्कच पर इन्द्र के द्वारा दी गयी अमोघ शक्ति का प्रयोग किया, जिससे आखिरकार घटोत्कच की मृत्यु हो गयी। अमोध शक्ति से पीड़ित घटोत्कच ने अपनी मायावी-आसुरी शक्तियों का प्रयोग करके, अपने शरीर को भगवान् श्री कृष्ण के आदेश पर 25 योजन तक बढ़ा लिया। शक्ति लगने से मृत्यु को प्राप्त होने के बाद उसका शरीर इतना बढ़ चुका था कि कौरवों की कई अक्षोहणी सेना उसके नीचे दबकर काल का ग्रास बन गई।
अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने घटोत्कच को कौरव सेना में हाहाकार मचाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हें पता था कि जब तक कर्ण के पास इंद्र की दी गयी शक्ति थी, अर्जुन उसे परास्त नहीं कर सकता था और कर्ण अर्जुन के प्राण कभी भी ले सकता था। जब कर्ण ने घटोत्कच का वध किया तो कौरव सेना में कर्ण को छोड़ कर सभी हर्षित थे, क्योंकि उसे पता था कि अर्जुन की मृत्यु उसके हाथ से निकल चुकी थी। पाँडव सेना में भगवान् श्री कृष्ण को छोड़ कर सभी दुखी थे, क्योंकि उन्हें पता था कि घटोत्कच ने अर्जुन को निश्चित मृत्यु से बचा लिया था।
 
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